24-06-72   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

एवररेडी बन अंतिम समय का आह्वान करो

अपने को बाप समान समझते हो? बाप समान स्थिति के समीप अपने को अनुभव करते हो? समान बनने में अब कितना अन्तर बाकी रहा है? बहुत अन्तर है वा थोड़ा? लक्ष्य तो सभी का यह है कि बाप समान बनें और बाप का लक्ष्य है कि बच्चे बाप से भी ऊंचे बनें, अब प्रैक्टिकल में क्या है? बाप के समान सामना करने की शक्ति नहीं आई है। नंबरवार पुरूषार्थ अनुसार अन्तर है। किसका कितना अन्तर, किसका कितना है। सभी का एक समान नहीं है। 50% अन्तर तो बहुत है। इसको कितने समय में मिटायेंगे? अब तक बाप और बच्चों में इतना अन्तर क्यों? अपने को एवररेडी समझते हो ना। तो एवररेडी का अर्थ क्या है? एवररेडी सदा समय का आह्वान करते हैं। तो जो एवररेडी होता है वह आह्वान करते हुये अपने को सदा तैयार भी रखते हैं। अन्तिम समय का सामना करने के लिए अब तैयार होना है ना? अगर समय आ जाए तो 50% समानता की प्राप्ति क्या होगी? एवररेडी अर्थात् सदा अन्तिम समय के लिए अपने को सर्व गुण सम्पन्न बनाने वाला। सम्पन्न तो होना है ना। गायन भी है सर्व गुण सम्पन्न बनाने वाला। सम्पन्न तो होना है ना। गायन भी है - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण। तो एवररेडी अर्थात् सम्पन्न स्टेज। ऐसा प्रैक्टिकल में हो जो सिर्फ एक कदम उठाने की देरी हो। एक कदम उठाने में कितना समय लगता है? इतना सिर्फ अन्तर होना चाहिए। इसको कहेंगे 1-2 परसेंट। कहां एक-दो परसेंट, कहां 50% फर्क हुआ ना। ऐसा एवररेडी वा सर्व गुण सम्पन्न बाप के समान बनने के लिए बाप- दादा द्वारा मुख्य तीन चीजें हरेक को मिली हुई हैं। उन तीनों की प्राप्ति है तो बाप समान बनने में कोई देरी नहीं लगती। वह तीन चीजें कौनसी बाप ने दी हैं? (श्रीमत, समर्पण और सेवा) यह तो चलने वा करने की बातें सुनाईं, लेकिन देते क्या हैं? सेवा भी कर सकते हो, समर्पण भी हो सकते हो लेकिन किसके आधार से? जन्म तो लिया लेकिन दिया क्या? वर्से में भी मुख्य क्या देते हैं? (हरेक ने बताया) भले रहस्य तो आ जाता है, सिर्फ स्पष्ट करने के लिए भिन्न रूप से सुनाया जाता है। पहले-पहले देते हैं लाइट, दूसरा देते हैं माइट, तीसरा देते हैं डिवाइन इनसाइट अर्थात् तीसरा नेत्र। अगर यह तीन चीजें नहीं हैं तो तीव्र पुरुषार्थी बन बाप के समान नहीं बन सकते। पहले तो जो आत्मायें बिल्कुल अज्ञान अंधेरे में आ चुकी हैं, उनको रोशनी अर्थात् लाइट चाहिए और लाइट के साथ फिर अगर माइट नहीं है तो लाइट की भी जो मदद लेनी चाहिए वह नहीं ले पाते। इस लाइट और माइट के साथ जो तीसरा नेत्र अर्थात् डिवाइन इनसाइट देते हैं उससे अपने पास्ट, प्रेजेन्ट और फ्यूचर - तीनों ही कालों को वा तीनों ही जीवन को जान सकते हो। जब यह तीनों ही चीजें प्राप्त होती हैं तब ही अपना बर्थराइट प्राप्त कर सकते हो अर्थात् वर्सा प्राप्त कर सकते हो। तो पहले लाइट, माइट और डिवाइन इनसाइट देते हैं। इस द्वारा ही अपने बर्थराइट को पा सकते हो और राइट को जान सकते हो। राइट शब्द के भी दो अर्थ होते हैं। एक अर्थ है बर्थ-राइट अर्थात् वर्सा और दूसरा राइट और रॉंग की पहचान मिली है। इसलिए बाप को टåथ कहा जाता है अर्थात् सत्य वा राइट। सत्य की पहचान तब कर सकते हो जब यह तीनों चीजें प्राप्त हैं। अगर एक भी चीज़ की कमी है तो रॉंग से राइट तरफ नहीं चल पाते हो। रोशनी होगी तब ही मार्ग को तय कर सकेंगे नहीं तो अंधिययारे में कैसे मार्ग तय्य कर सकेंगे वा अपने पुरूषार्थ की स्पीड को तेज कैसे कर सकेंगे? जैसे देखो, इस पुरानी दुनिया में जब ब्लैक-आउट होता है तो स्पीड को ढीला कर देते हैं, तेज स्पीड अलाउ नहीं करते हैं क्योंकि एक्सीडेंट होने का डर रहता है। तो ऐसे ही अगर पूरी लाइट नहीं तो स्पीड को तीव्र नहीं कर सकते हो, स्पीड ढीली चलती रहेगी। साथ-साथ अगर माइट नहीं है तो लाइट के आधार से चल तो पड़ते हो लेकिन माइट ना होने के कारण जो विघ्न सामने आते हैं उनका सामना नहीं कर पाते। इसलिए स्पीड रूकने के कारण सामना ना कर पायेंगे तो रूक जायेंगे। बार-बार रूकने के कारण भी स्पीड तेज अर्थात् तीव्र पुरूषार्थ नहीं कर पाते हो। और डिवाइन इनसाइट अर्थात् दिव्य नेत्र, तीसरा नेत्र खुला हुआ नहीं है, चलते-चलते माया बंद कर देती है। जैसे आजकल गवर्नमेंट भी किसी को पकड़ने के लिए वा किसी हंगामें को बंद करने के लिए गैस छोड़ती है तो आँखें बंद हो जाती हैं, आंसू आने के कारण देख नहीं पाते हैं, जो करना चाहते वह कर नहीं पाते। इसी रीति जो तीसरा नेत्र मिला है, अगर माया की गैस वा धूल उनमें पड़ जाती है तो तीसरा नेत्र होते हुए भी जो देखना चाहते हैं वह देख नहीं पाते हैं। तीनों चीजें आवश्यक हैं। तीनों ही अगर ठीक हैं, यथार्थ रीति प्राप्त हैं, जैसे बाप ने दी हैं वैसे ही धारण कर रहे हैं, उसी आधार पर चल रहे हैं तो कब भी रॉंग कर्म वा असत्य कर्म कर नहीं सकते, सदा राइट तरफ जायेंगे। रॉंग हो ही नहीं सकता क्योंकि तीसरे नेत्र द्वारा राइट-रॉंग जान लेते हैं। जब जान लिया है तो फिर रॉंग नहीं करेंगे। लेकिन माया की धूल पड़ने से परख नहीं सकते, इसलिए राइट को छोड़ रॉंग की तरफ चले जाते हैं। तो कब भी कोई रॉंग वा असत्य कर्म होता वा संकल्प भी उत्पन्न होता है वा असत्य शब्द निकलता है तो समझना चाहिए कि इन तीनों चीजों में से किसी चीज़ की कमी हो गई, इसलिए जजमेंट नहीं कर पाते हैं। और जब तक रॉंग-राइट को नहीं जानते हो तो सम्पूर्ण बर्थराइट भी नहीं ले सकते। राइट कर्म से सम्पूर्ण बर्थराइट मिलता है। अगर राइट कर्म नहीं है, कब राइट, कब रॉंग होता है तो बर्थ-राइट भी सम्पूर्ण नहीं मिलेगा। जितना राइट संकल्प और कर्म करने में कमी होगी, उतना ही बर्थ-राइट लेने में भी कमी होगी। तो यह तीनों प्राप्ति सदा कायम रहें, उसके लिए मुख्य किस बात का अटेन्शन रहना चाहिए जो बहुत सहज है और सभी कर सकते हैं? रिवाइज कोर्स में भी वही सहज युक्ति बार-बार रिवाइज हो रही है। रिवाइज कोर्स अटेन्शन से सुनते हो, पढ़ते हो? ऐसे तो नहीं समझते हो - जानी-जाननहार हो गये? जानी-जाननहार अपने को समझ कर रिवाइज कोर्स को हल्का तो नहीं छोड़ देते हो? आज पेपर लेते हैं। ऐसा कौन है जो एक दिन भी रिवाइज़ कोर्स की मुरली मिस नहीं करते हैं वा धारणा में अटेन्शन नहीं देते है, वह हाथ उठावें? कहाँ आने-जाने में जो मुरली मिस करते हो वह पढ़ते हो वा मिस हो जाती है? ऐसे तो नहीं समझते हो अब नॉलेज को जान ही चुके हैं? भल जान चुके हो, लेकिन अभी बहुत कुछ जानने को रह गय्या है। जो अच्छी तरह से रिवाइज कोर्स को रिवाइज करते हैं वह स्वयं भी ऐसा अनुभव करते हैं। वह रिवाइज कोर्स करते भी पुराना लगता है वा नया लगता है? नय्यों के लिए तो कई बातें होंगी लेकिन जो पुराने हैं वह फिर से रिवाइज कोर्स से क्या अनुभव करते हैं? नया लगता है? क्योंकि ड्रामा अनुसार रिवाइज क्यों हुआ? यह भी ड्रामा की नूंध थी। रिवाइज क्यों कराया जाता है? अटेन्शन कम हो जाती है, स्मृति कम होती है तो बार-बार रिवाइज कराया जाता है। तो यह भी रिवाइज इसीलिए हो रहा है, क्योंकि अभी पै्रक्टिकल में नहीं आये हो। जितना सुना है, जितना सुनाते हो उतनी पै्रक्टिकल में पावर नहीं भरी है, इसलिए पावरफुल बनाने के लिए फिर से यह कोर्स चल रहा हे। पुरानों को पावरफुल बनाने के लिए और नयों को पावरफुल बनाने के साथ-साथ अपना हक पूरा मिलने के कारण भी यह रिवाइज कोर्स चल रहा है। तो अब इसी कमी को भी भरने के लिए अटेन्शन को बार-बार रिवाइज करना। तो रिवाइज कोर्स से जो संस्कार और स्वभाव परिवर्तन में लाना चाहते हो, वह परिवर्तन में आ जायेंगे। अच्छा, यह तो बीच में पेपर हो गया। पहली जो बात पूछ रहे थे - सहज युक्ति कौन-सी है, जो रिवाइज कोर्स में भी बहुत रिवाइज हो रही है? वह है अमृतवेले अपने आपसे और बाप से रूह-रूहान करना वा अमृतवेले को महत्व देना। जैसा नाम कहते हो वैसे ही उस वेला को वरदान भी तो मिला हुआ है। कोई भी श्रेष्ठ कर्म करते हैं तो आज तक के यादगार में भी वेला को देखते हैं ना। यहाँ भी पुरूषार्थ के लिए सहज प्राप्ति के लिए सबसे अच्छी वेला कौन-सी है? अमृतवेला। अमृतवेले के समय अपनी आत्मा को अमृत से भरपूर कर देने से सारा दिन कर्म भी ऐसे होंगे। जैसी वेला श्रेष्ठ, अमृत श्रेष्ठ वैसे ही हर कर्म और संकल्प भी सारा दिन श्रेष्ठ होगा। अगर इस श्रेष्ठ वेला को साधारण रीति से चला लेते तो सारा दिन संकल्प ओैर कर्म भी साधारण ही चलते हें। तो ऐसे समझना चाहिए यह अमृतवेला सारे दिन के समय का फाउन्डेशन वेला है। अगर फाउन्डेशन कमज़ोर वा साधारण डालेंगे तो ऊपर की बनावट भी आटोमेटिकली ऐसी होगी। इस कारण जेसे फाउन्डेशन की तरफ सदैव अटेन्शन दिया जाता हे वैसे सारे दिन का फाउन्डेशन टाइम अमृतवेला हे। उसका महत्व समझकर चलेंगे तो कर्म भी महत्व प्रमाण होंगे। इसको ब्रह्म-मुहूर्त भी क्यों कहते हैं? ब्रह्मा-मुहूर्त है वा ब्रह्म-मुहूर्त है? ब्रह्मा- मुहूर्त भी राइट है, क्योंकि सभी ब्रह्मा समान नये दिन का आरम्भ, स्थापना करते हो। वह भी राइट है, लेकिन ब्रह्म-मुहूर्त का अर्थ क्या है? उस समय का वायुमण्डल ऐसा होता है जो आत्मा सहज ही ब्रह्म-निवासी बनने का अनुभव कर सकती है। दूसरे समय में पुरूषार्थ करके अवाज से, वायुमण्डल से अपने को डिटैच करते हो या मेहनत करते हो। लेकिन उस समय इस मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। जेसे ब्रह्म घर शान्तिधाम हे वैसे ही अमृतवेले के समय में भी आटोमेटिकली साइलेंस रहती है। साइलेंस के कारण शान्तस्वरूप की स्टेज वा शान्तिधाम निवासी बनने की स्टेज को सहज ही धारण कर सकते हो। तो जो श्रीमत मिली हुई हे, इसको ब्रह्म-मुहूर्त के समय स्मृति में लायेंगे तो ब्रह्म-मुहूर्त वा अमृतवेला के समय स्मृति भी सहज आ जायेगी। देखो, पढ़ाई पढ़ने वाले भी पढ़ाई को स्मृति में रखने के लिए इसी टाइम पढ़ने की कोशिश करते है, क्योंकि इसी समय सहज स्मृति रहती है। तो अपनी स्मृति को भी समर्थवान बनाना है वा स्वतः स्मृतिस्वरूप बनना है तो अमृतवेले की मदद से वा श्रीमत का पालन करने से सहज ही स्मृति को समर्थीवान बना सकते हो। जैसे समय की वेल्यु है इतनी इसी समय को वैल्यु देते हो वा कब नहीं देते हो? वैल्यु का तराजू कब नीचे, कब ऊपर जाता है? क्या होता हे? यह बहुत सहज युक्ति है सिर्फ इस युक्ति को इतनी वेल्यु देनी है। जैसे श्रीमत है उसी प्रमाण समय को पहचान कर ओैर समय प्रमाण कर्त्तव्य किया तो बहुत सहज सर्व प्राप्ति कर सकते हो। फिर मेहनत से छूट जायेंगे। छूटना चाहते हो तो उसके लिए जो साधन है, उसको अपनाते जाओ। अच्छा।

सदा लाइट-हाउस ओैर माइट-हाउस बन चलने वाले, सर्व आत्माओं को डिवाइन इन-साइट देने वाले बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।